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यस आई एम–6 [इन्वेस्टिगेशन]

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अभय और दुबे दोनों जीप में जाकर बैठ गए और वहां से पुलिस स्टेशन के लिए रवाना हो गए।

"सर! हमें हमेशा से आप जैसे इंस्पेक्टर की जरूरत थी।" दुबे की बात सुनकर अभय वास्तविकता में आ गया। "तुम भी बहुत अच्छे हो दुबे जी।" अभय ने अपनेपन के साथ जवाब दिया। दुबे ने भी उसे महसूस किया।

"वैसे आप इस फील्ड में ही क्यों आए?" दुबे ने उत्साहित होते हुए पूछा और इसी के साथ अभय अपनी पुरानी यादों में खो गया।

ग्यारह और तेरह साल के दो मासूम से बच्चे चारों तरफ से मीडिया से घिरे हुए थे। डर की वजह से वे एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे। उनके चेहरे पर दुःख, पीड़ा के मिले जुले भाव थे।।

"क्या इन सबके पीछे तुम्हारे बाप का हाथ है। क्या उन्होंने ही आतंकवादियों की यहां आने में मदद की? क्या वें ही साइबर सेल के हेड है?" एक रिपोर्टर ने आगे आते ही एक के बाद एक सवालों की लाइन लगा दी।

"नही, ये सब झूठ है। पापा ने ऐसा कुछ भी नही किया। समझे तुम लोग।" तेरह साल के लड़के ने चिल्लाते हुए जवाब दिया।

"और फिर कैसा है? तुम अपने सच्चाई बता दो। अगर कुछ गलत नहीं हुआ तो वे सामने क्यों नहीं आ रहे? सीधा सा मतलब है उन सब के पीछे तुम्हारे पापा है।" उसने बड़े भड़काऊँ तरीके से अपनी बात कही। किसी को उन दोनों बच्चों से कोई लेना देना नही था।

"सर...सर!" दुबे की आवाज सुनकर अभय वास्तविकता में आ गया और इधर उधर देखते हुए बोला। "क्या हुआ दुबे तुमने जीप क्यों रोक दी?"

"वो सर मै बहुत देर से आपको आवाज लगा रहा था आपने कोई जवाब ही नहीं दिया। कुछ हुआ है?" दुबे ने चिन्तित स्वर में पूछा।

"कुछ नही हुआ दुबे। बस केस के बारे में सोच रहा था।" अभय ने अपने चेहरे पर आए हुए भावों को छिपाते हुए जवाब दिया और फिर आगे बोला। "मै इन्स्पेक्टर इसलिए बना ताकि मै इस पद की छवि सुधार सकूं।" इतना सुनते ही दुबे ने जीप स्टार्ट की और पुलिस स्टेशन की ओर रवाना हो गए।

"राहुल के दोस्तों को कॉल करके पुलिस स्टेशन बुलवा लो। उनसे जरूरी पूछताछ करनी है।" अभय ने कुछ सोचते हुए कहा। दुबे ने कॉल करके राहुल के दोस्तों को पुलीस स्टेशन बुला लिया।

"वैसे सर एक बात पूछूं?" दुबे ने पूछा। जवाब में अभय ने हां में सिर हिला दिया।

"ये अमीर बाप के बच्चे इतने बिगड़े हुए क्यों होते है?" दुबे ने सिर खुजाते हुए पूछा।

"क्योंकि वे अपने मां, बाप के पैसों पर जीते है, खुद की मेहनत पर नही। फ्री में सब कुछ मिलने से उन्हें किसी चीज की अहमियत ही नही पता होती।" अभय ने सपाट लहजे में जवाब दिया।

"ये तो आप ने सही कहा सर!" दूबे भी उसकी बात से इत्तेफाक रखता था।

थोडी देर बाद दोनों पुलिस स्टेशन पहुंच गए। पहुंचते ही अभय की नजर बैंच के ऊपर बैठे हुए दो लड़के और एक लड़की के ऊपर पड़ी। वह उन्हें देखते ही समझ गया कि वे राहुल मेहरा के दोस्त थे।

“दुबे इन्हे अंदर भेजो।” कहकर वह सीधा अंदर चला गया। दुबे ने तीनों को अंदर भेज दिया।

“सर बैठ जाएं?” उनमें से एक लड़के ने पूछा।

इशारा मिलते ही तीनों अभय के सामने रखी हुई कुर्सियों पर बैठ गए।

"मिस्टर मेहरा को राहुल के गायब होने के बारे में कुछ पता है?" अभय ने उनके बैठते ही सवाल पूछा।

"नही!" अभय के दाएं ओर बैठे हुए लड़के ने जवाब दिया।

"तुम्हारा नाम?" अभय ने उसके चेहरे को देखते हुए पूछा।

"जी! नितिन मिश्रा!" लड़के ने हकलाते हुए जवाब दिया।

"और क्यों नही मालूम?" अभय ने आंखें गोल करते हुए पूछा।

"क्योंकि उसकी अपने बाप के साथ बिल्कुल भी नही बनती थी।" इतना बताने के बाद वह रुक गया। पास में बैठी लड़की ने कोहनी मारकर उसे चुप रहने का इशारा किया था।

"बिना रुके बोलो।" अभय ने सख्ती से कहा।

"मिस्टर मेहरा को कभी भी अपने बेटे के काम पसंद नही आए। वें हमेशा उस से तंग रहते थे। पर अपनी बीवी के आगे मजबूर थे। इसी वजह से हर बार राहुल को बचा लेते थे। साथ ही कभी नही चाहते थे कि उनके बेटे की वजह से उनका नाम खराब हो इसलिए दूर ही रहते थे।" नितिन ने बिना रुके ही सब कुछ बता दिया था जो उसे मालूम था।

"और तुम दोनों का क्या नाम है?" अभय ने दूसरे लड़के और लड़की की तरफ़ देखते हुए पूछा।

"जी! मेरा नाम जाह्नवी वर्मा और इसका नाम मोहित शर्मा।" लड़की ने पास खड़े हुए लड़के की तरफ इशारा करते हुए कहा।

"देखने से तो तुम अच्छे भले परिवार से ताल्लुकात रखती हो। फिर बार में क्या कर रही थी?" अभय ने लड़की के हुलिया देखते हुए पूछा। जिसने पार्टी वियर टॉप और शॉर्ट्स पहनने हुए थे। पर टीवी में दिखाई जाने वाली अमीर बाप की बिगड़ी हुई लड़की की तरह नहीं।

"देखने से तो आप भी पुलिस इंस्पेक्टर कम और मॉडल ज्यादा लग रहे हो।" जाह्नवी ने फुसफुसाते हुए कहा।

"कुछ कहा तुमने?" अभय ने आंखें दिखाते हुए पूछा और फिर आगे बोला। "जितना पूछा जाए उतना जवाब दो। ज्यादा होशियारी दिखाने की जरूरत नही।"

"हम अमीर बच्चों को सब सुख सुविधाएं दी जाती है सिवाए मां बाप के प्यार और साथ के। सही गलत के बारे में हमें पता ही नही होता।" जाह्नवी ने सपाट भाव से जवाब दिया। पर उसकी आवाज में दुःख साफ झलक रहा था।

"ये तो आपने सही कहा! पैसों के आगे रिश्ते..खैर।" अभय ने तसल्ली देते हुए कहा। और फिर आगे बोला। "तुम राहुल मेहरा के साथ क्यों रहे हो? क्योंकि तुम्हारा तो कोई रिकॉर्ड भी नही।"

"जरूरी नही हर बार मर्जी से साथ रहा जाए। कुछ बार मजबूरी भी होती है।" इस बार मोहित ने जवाब दिया।

"ऐसा क्यों?" वहां से निकल कर जा रहे तेज बहादुर के मुंह से अनायस ही निकल गया। उसने आस पास देखा तो पाया कि सब उसे ही घूर रहें थे। तेज बहादुर ने फाइल मेज पर रखी और वहां से दुम दबा कर चला गया।

"वो जाह्नवी के पापा और राहुल के पापा बिजनेस पार्टनर के साथ साथ अच्छे दोस्त भी है। इस वजह से जाह्नवी उसे बचपन से जानती है।" मोहित ने अभय की आंखो के इशारे को समझते हुए जवाब दिया।

"तुम और नितिन?" अभय ने बारी बारी से दोनों की तरफ देखा।

"मै जाह्नवी का दोस्त हूं और इस से प्यार भी करता हूं।" कहते ही मोहित चुप हो गया और फिर अभय की आंखों को पढ़ते हुए आगे बोला। "मैने जब राहुल के बारे में अफवाह सुनी तो मैंने भी उसके साथ दोस्ती कर ली ताकि जाह्नवी सुरक्षित रह सके।"

"और ये नितिन?" अभय ने गर्दन नीचे करके बैठे हुए नीतिन को देखते हुए पूछा। वह फिर भी कुछ नही बोला।

"तुम से ही पूछा गया है।" अभय ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा। उसकी आवाज सुनकर नितिन घबरा गया।

"मै.. मै राहुल मेहरा की तहकीकात के लिए आया था।" उसकी जवाब सुनकर पास बैठे हुए उसके दोस्त उसे अजीब तरीके से देखने लगे। वह अपनी हकलाहट पर काबू पाते हुए बोला। "गांव से मेरी बहन यहां पर पढ़ने के लिए आई थी और एक दिन अचानक से ना जाने वह कहां गायब हो गई। बहुत खोजबीन के बाद भी उसके बारे में कुछ भी पता नही चल पाया सिवाए इस बात के कि उसे कही बेच दिया गया है।

तभी से मै अपनी बहन की खोज में लग गया और उसी सिलसिले में मेरी मुलाकात राहुल से हुई। मुझे पूरा यकीन है लड़कियां की तस्करी में उसका भी हाथ है। मैने बहुत कोशिश की पर जब कुछ पता नही चला तो मुझे राहुल के साथ दोस्ती करना ही सही लगा ताकी कुछ तो पता चल पाए। उस से बड़ी मुश्किल से दोस्ती हुई पर मुझे मेरी बहन ने बारे में कुछ भी पता नही चल पाया।“ बात बताते हुए उसकी आंखें भर आई थी।

अभय ने दुबे को आवाज लगा कर पानी मंगावाया और नितिन को पीने के लिए दे दिया। पानी पी कर नितिन को हल्का महसूस हुआ। जाह्नवी और मोहित उसे सहानुभूति भरी नजरों से देख रहे थे।

"दुबे! जीप निकालो। इन तीनों को साथ ले कर बार में जाना। जो जंगल के पास बना हुआ है।" अभय ने ऊंची आवाज में बोलते हुए कहा।

दुबे अगले ही पल वहां पर हाजिर हो गया।

"कमाल है दुबे जी! बड़ी फुर्तीले हो आप तो।" अभय ने तारीफ के अंदाज में दुबे को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा।

अभय सभी को लेकर वहां से रवाना हो गया।

“दी।”आवाज सुनकर श्रेयाँशी अपनी सोच से बाहर आ गई। सामने एक लड़की खड़ी हुई थी। उसके हाथ में एक किताब थी, उसने एंट्री की और वहां से चली गई।

"वैसे तृष्णा बड़ी ही प्यारी और समझदार बच्ची है। सारे काम बखूबी करती है। मै हमेशा उसकी कर्जदार रहूंगी। उसने मुझे घर के साथ साथ काम भी दिया और सबसे ज्यादा जरूरी बात, मुझे मेरी पहचान दिलाई।" सोचते हुए श्रेयाँशी मुस्कुरा दी।

तृष्णा अपने कमरे में बैठी हुई किताब पढ़ रही थी।

"वाउ! बडी ही इंटरस्टिंग किताब है।" तृष्णा ने किताब के पन्ने पलटते हुए कहा और फिर आगे बोली। "वैसे इस कहानी से काफी कुछ सीखने को मिल जाएगा। लाइक सस्पेंस क्रिएट करना, पेस संभालना और ट्विस्ट देना भी।" इतना कहते ही वह किताब के कवर को देखने लगी। कवर के ऊपर लेखक का नाम नहीं लिखा हुआ था। "कमाल की बात है। या फिर ये कहूं कमाल का राइटर है। इतनी बेहतरीन किताब लिखने के बाद भी अपना नाम नही लिखा।" तृष्णा ने बदलते हुए भावों के साथ कहा। उसके कहे शब्दों में हैरानी और प्रशंसा के साथ साथ अनेकों भाव थे। "इस कहानी का हर एक कैरेक्टर रहस्यमई है।" उसने रोमांच के साथ कहा।

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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️ लाइक जरूर करे।

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7 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:22 PM

Nice

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Shalu

07-Jan-2022 02:01 PM

Very good

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Ali Ahmad

10-Dec-2021 12:16 PM

Oho kya baat h, lekhak me antardvand ko khuub gahraai se darsha rahi h aap, lekin ye itna asan bhi nhi hone vala h. Vaise is kahani me apke lekhn ke kai alg rang bhi dekhne ko mil rahe hb

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